
मुकेश असीम:
500 रु में पूरे आधार डेटाबेस में पहुँच का भांडा फोड़ने वाली रचना खैरा ने आज यह भी सिद्ध कर दिया कि 2500 रु में उपलब्ध एक सॉफ्टवेयर पैच से दुनिया में कहीं भी बैठकर आधार डेटाबेस में खुद ही जितना चाहो आधार बनाया जा सकता है।
पर मुझे इस बात की कतई कोई परवाह नहीं कि आधार की सुरक्षा कमजोर है। बल्कि इसकी सुरक्षा पक्की होती तो चिंता की बात होती। आधार अधिनायकवादी और फासिस्ट सरकारों द्वारा नागरिकों पर जासूसी, निगहबानी और नियंत्रण का औज़ार है; यह जितना कमजोर हो और खुद की कमजोरियों से ही ढह जाये, मुझे उतनी ही खुशी होगी।
यहाँ सवाल भिन्न है।
गुजरात, उप्र, पंजाब, दिल्ली – कई राज्यों से फर्जी आधार मिलने और उसके जरिये गरीब जनता को मिलने वाला सस्ता राशन आदि चोरी कर लेने की रिपोर्टें पहले ही आती रही हैं। अब अगर कहीं से भी पैच इस्तेमाल कर फर्जी आधार बनाया जा सकता है तो कितने गिरोह इन्हीं आधार के सहारे गरीबों को मिलने वाली कितनी सुविधायें चुरा ले रहे हैं, उसका हिसाब लगाना भी मुश्किल है। देश के विभिन्न हिस्सों से राशन, बुढ़ापा पेंशन, छात्रवृत्ति, वगैरह न मिलने की वजह से तकलीफ झेलते, जान तक गँवाते गरीब लोगों की खबरें हम सुनते-पढ़ते ही रहते हैं, लेकिन इन सुविधाओं के नाम पर केंद्र-राज्य सरकारों द्वारा दिखाया गया खर्च आधार के सहारे ही तो कहीं ओर नहीं जा रहा, इसका जवाब किसके पास है?
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