
उर्दू ग़ज़ल में चाय की चर्चा
हम उसके कप को सुनाते रहे ग़ज़ल अपनी
~ जुबैर अली ताबिश
छोड़ आया था मेज़ पर चाय
ये जुदाई का इस्तिआरा था
~ तौकीर अब्बास
इतनी गर्मजोशी से मिले थे,
हमारी चाय ठंडी हो गई थी।
~ Khalid Mehboob
बहकते रहने की आदत है मेरे कदमो को,,
शराब खाने से निजलूं के चाय खाने से।।
~ राहत इंदौरी
कुछ चलेगा जनाब, कुछ भी नहीं
चाय, कॉफी, शराब, कुछ भी नहीं
~ ‘अना’ क़ासमी
ख्वाहिशें कल हुस्न की महमान थीं,
चाय को भी नाश्ता कहना पड़ा।
~ जुबैर अली ताबिश
चलो अब हिज़्र के किस्सों को छोड़ो
तुम्हारी चाय ठंडी हो रही है
~ ज़ुबैर अली ताबिश
एक गर्म बहस चाट गई वक्ते मुकर्रर,
मुद्दे जो थे वो चाय के प्यालों में रह गए।
~ फानी जोधपुरी @ Fani Jodhpuri
कल के बारे में जियादा सोचना अच्छा नहीं
चाय के कप से लबों का फासला है जिंन्दगी
~ विजय वाते
महिने में किसी रोज कहीं चाय के दो कप,
इतना है अगर साथ, तो फिर साथ बहुत है
~ अना क़ासमी
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