
सरकार की सफाई की सबसे महत्वपूर्ण समस्या यह है कि सीबीआई के निदेशक को हटाने का अधिकार न तो सीवीसी और न ही सरकार के पास है। सीबीआई निदेशक की नियुक्ति कॉलेजियम द्वारा होती है जिसमें प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और विपक्ष के नेता शामिल होते हैं।
सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को अचानक 23 और 24 अक्टूबर के बीच की आधी रात को छुट्टी पर भेजने का फैसला केंद्र सरकार के लिए न सिर्फ किरकिरी का सबब बन गया है, बल्कि आने वाले दिनों में इसे लेकर उसे कानूनी मुश्किलों का सामना भी करना पड़ सकता है।केंद्र सरकार अपने इस फैसले के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की सिफारिश का तर्क दे रही है।
#WATCH: Union Min Arun Jaitley says, "CVC in its yesterday's meeting said neither these 2 officers (Arun Verma & Rakesh Asthana) nor any agency under their supervision can investigate charges against them. So the officers will sit out by going on leave. It's an interim measure" pic.twitter.com/NHffr1WLeD
— ANI (@ANI) October 24, 2018
Various opportunities have been given to produce such records and after several adjournments, though CBI assured the Commission on 24th Sept 2018 to furnish the records within three weeks: I&B Ministry (2/3)
— ANI (@ANI) October 24, 2018
वित्त मंत्री ने अपने प्रेस कांफ्रेस में कहा कि सीवीसी की बैठक में यह राय बनी कि जब तक वे दोनों अधिकारी अपने पद पर रहेंगे उनके खिलाफ जांच नहीं हो सकती, इसलिए उन दोनों को छुट्टी पर भेजा गया है और यह एक अंतरिम उपाय है। दूसरी तरफ अजीबोगरीब ढंग से पीएमओ या सीवीसी की बजाय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने प्रेस नोट जारी कर कहा कि सीवीसी को सीबीआई के अधिकारियों के बारे में शिकायतें मिली थीं। इसे लेकर सीबीआई के निदेशक से जानकारी मांगी गई थी, लेकिन कई बार जानकारी मांगने और आश्वासन मिलने के बाद भी उन्होंने जानकारी नहीं दी। सीबीआई निदेशक इस मामले में सहयोग भी नहीं कर रहे थे।
लेकिन इस पूरी (अ) तार्किक सफाई की सबसे महत्वपूर्ण समस्या यह है कि सीबीआई के निदेशक को हटाने का अधिकार न तो सीवीसी और न ही सरकार के पास है। सीबीआई निदेशक की नियुक्ति एक कॉलेजियम द्वारा होती है जिसमें प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और विपक्ष के नेता शामिल होते हैं और चयनित निदेशक को दो साल का सुरक्षित कार्यकाल भी मिलता है। खुद आलोक वर्मा अपने हटाए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाल चुके हैं और उन्होंने भी नियमों का हवाला देते हुए यह बात कही है।
वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी प्रेस कांफ्रेंस कर बहुत विस्तार से नियमों की जानकारी दी और मोदी सरकार के इस कदम को गैर-कानूनी ठहराया।अब सवाल उठता है कि शुक्रवार को जब सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ आलोक वर्मा की याचिका पर सुनवाई करेगी, उस समय केंद्र सरकार के पास नियमों का ताक पर रखकर लिए गए अपने इस फैसले का बचाव करने के लिए क्या तर्क होगा या कोई तर्क होगा भी?
Be the first to comment