
सीबीआई को पश्चिम बंगाल में किसी भी जांच, छापामारी आदि की कार्रवाई से पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की प्रतिष्ठा को उसके दो शीर्ष अधिकारियों (आलोक वर्मा व राकेश अस्थाना) की आपसी लड़ाई और आरोप-प्रत्यारोप ने गहरा धक्का पहुंचाया है. इसीलिए पहले आंध्र प्रदेश और इसके बाद अब पश्चिम बंगाल सरकार ने भी सीबीआई को अपने राज्य में प्रतिबंधित कर दिया है.
ख़बरों के मुताबिक आंध्र प्रदेश की तरह पश्चिम बंगाल सरकार ने भी सीबीआई को दी गई ‘जनरल कंसेंट’ वापस ले ली है. यानी पश्चिम बंगाल में किसी भी जांच, छापामारी आदि की कार्रवाई से पहले सीबीआई को अब राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी. पहले राज्य सरकार की ‘जनरल कंसेंट’ के तहत सीबीआई को इस कार्रवाई के लिए पूर्व ‘सहमति’ मिली हुई थी. हालांकि अदालत ने जिस जांच का आदेश दिया है या जो जांचें केंद्रीय अधिकारियों के ख़िलाफ़ हैं उनमें सीबीआई अब भी इन राज्यों की सरकार की पूर्व अनुमति के बिना कार्रवाई आगे जांच नही करे
इससे पहले आंध्र प्रदेश ने भी ऐसा ही क़दम उठाया था. राज्य के गृह मंत्री एन चिना राजप्पा ने बताया था कि सीबीआई अधिकारियों की आपसी लड़ाई और उन पर लगे आरोपों की वज़ह से सरकार उसे दी गई ‘जनरल कंसेंट’ वापस ले रही है. वहीं पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से कहा गया कि उसने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू के समर्थन में यह क़दम उठाया है. राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मानती हैं कि केंद्र और भाजपा अपने राजनीतिक हित साधने के लिए सीबीआई व अन्य एजेंसियां का विरोधियों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल कर रही है.
दूसरी तरफ़ भारतीय जनता पार्टी के राज्य सभा सदस्य जीवीएल नरसिम्हा राव ने कहा, ‘देश में भ्रष्ट पार्टियों का गठबंधन आकार ले रहा है. सीबीआई अफसरों के आरोप-प्रत्यारोप की आड़ में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने वाली देश की इस शीर्ष एजेंसी को प्रतिबंधित करना इसी का प्रमाण है. भाजपा अब इस मामले को हर उचित फोरम पर उठाएगी.’
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