
केंद्र की मोदी सरकार ने खुद माना है कि 411 दवाओं पर 75% से ज्यादा मुनाफा लिया जा रहा है। जबकि हकीकत में इन दवाओं की संख्या कम से कम है 850 है। ऐसे में संदेह खड़ा होता है कि कहीं न कहीं कोई बड़ा घोटाला है।
सारे नियम-कानून तोड़कर 75 फीसदी से ज्यादा मुनाफा कमाने वाली दवाओं के मामले में भी मोदी सरकार गलत आंकड़े पेश कर रही है। सरकार ऐसी दवाओं की संख्या 411 बता रही है, जबकि हकीकत में ये संख्या कम से कम 850 है। फार्मास्यूटिकल्स विभाग मानता है कि दवाओं की बिक्री में तीन हजार करोड़ की अनियमतता हो रही है। जाहिर है, यह आकलन सरकार ने 411 दवाओं के मद्देनजर किया। अगर इनकी वास्तविक संख्या के आधार पर आकलन किया जाता तो यह गड़बड़ी कहीं बड़ी होती।
सरकार का कहना है कि दवाओं पर ज्यादा मुनाफा लेने का यह मामला मार्च 2017 तक 2,987 करोड़ का है। जाहिर है, यह अतिरिक्त राशि का भार आम लोगों पर ही पड़ रहा है। रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने तेलंगाना स्थित इंजीनियर एवं निजामाबाद चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के संस्थापक अध्यक्ष पी आर सोमानी को बताया कि गैर-सूचित दवाओं के 27,321 उत्पादों पर मुनाफा 30 फीसदी से कम है।
मंत्रालय ने अपने लिखित जवाब में बताया कि इसका मतलब साफ है कि 11 फीसदी गैर-सूचित दवाओं पर मुनाफा 30 फीसदी से ज्यादा लिया जा रहा है। इसी पत्र में सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि गैर-सूचित दवाओं की कीमत में सालाना दस फीसदी से ज्यादा का इजाफा नहीं किया जा सकता है, लेकिन विभिन्न दवाओं के मामले में मूल्य-नियंत्रण नियम का पालन नहीं हो रहा।
हालांकि सोमानी कहते हैं कि मेडकल स्कैम कहीं बड़ा है और इसका खामियाजा आम लोगों को उठाना पड़ रहा है। वह कहते हैं कि ‘थोक और खुदरा मूल्य में बड़ा अंतर है। कई कंपनियां तो एमआरपी को 3,000 प्रतिशत से ज्यादा दिखा रही हैं।’ सोमानी ने कहा कि उन्होंने सरकार को करीब 1,100 ऐसे उत्पादों की सूची सौंपी है जिन पर 100 फीसदी से ज्यादा मुनाफा लिया जा रहा है जबकि सरकार के मुताबिक केवल 460 उत्पादों पर 75 फीसदी से ज्यादा मुनाफा लिया जा रहा है।
नवजीवन के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 75 फीसदी से अधिक मुनाफा कमाने वाली कंपनियों में शामिल हैं- अबॉट (223 उत्पाद), सिप्ला (179), थियोजेन (273), एम्क्योर (99), वॉकहार्ड (76) आदि। इनमें कई उत्पादों पर तो 2,125 फीसदी तक मुनाफा भी लिया जा रहा है। आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल कहते हैं कि भारतीय दवा बाजार में गैर-सूचित दवाओं की हिस्सेदारी 80 फीसदी की है।
धैर्य माहेश्वरी की रिपोर्ट साभार नवजीवन
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