
सुप्रीम कोर्ट में गलत, अस्पष्ट या द्विअर्थी संवाद बोलना साधारण नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में जो बोला जाए उसपर स्पष्टीकरण देना पड़े – इससे बड़ी लापरवाही क्या हो सकती है। इसकी खबर ऐसी होनी चाहिए थी। पहली बार नहीं तो कम से कम दूसरी बार। इंदौर के प्रजातंत्र ने वह किया है जो बड़े अखबारों के छोटे-छोटे संपादक नहीं कर पाए। आप जानते हैं कि पहले “टाइपिंग की गलती” से गलत अर्थ निकल चुका है। इस खबर में उसकी भी चर्चा है।
साभार: भड़ास4मीडिया से
Be the first to comment